उगाना और चुगना
दो बीज बसंत के मौसम में उपजाऊ मिटी में पास-पास पडे थे ।
पहले बीज ने कहा, में उगना चाहता हूं में अपनी जडें नीचे जमीन की गहराई में भेजना चाहता हूं और अपने अकुंर को जमीन की परत के ऊपर धकेलना चाहता हूं.....
बसंत के आगमन की घोषणा करने के लिए मैं अपनी कमल कलिय़ं को झडों
की तरह लहराऊंगा ...में अपने चेहरे सूरज की गरमॉ और अपनी पखुडियों पर सुबह की ओस महसूस करना चहता हूं।
इसलिए वह बीज उग गया।
दुसरे बीज ने कहा, मुझे डरलग रहा है, अगर में अपनी जडें जमीन के नीचे भेजीं तो कया पता अंधेरे में वहां कया मिलगा। अगर मैंने ऊपर की कठोर जमीन में अपने अंकुर धकाए, तो हो सकता है कि मेरे नाजुक अंकुरों को नुकसान हो जाए ...अगर मैंने अपनी कलियां खोलीं, और कहीं घोंघे ने उनहें खाने की कोशिश की, तो कया हगा? और अगर मैंने
अपने फूल की पंखुडियां खोलीं, तो कोई छोटा बचा मुझे जमीन से उखाड
सकता है।
नहों अचछा यही रहगा कि मैं सब कुछ सुरक्षित होने तक यहीं इंतजार करूं।
इसलिए वह बीज इंतजार करता रहा।
एक मुरगी मैदान में खाने-पीने का सामान खोज रही थी, उसे वह इंतजार करता हुआ बीज मिल गया
और उसने उसे ततकल खा लिया।
"chicken soup for the soles" से पेरषित।
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